मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुजार लूँ
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में शाम हो जाये
Bashir Badr Shayari
चाँद चेहरा, ज़ुल्फ़ दरिया, बात खुशबू, दिल चमन इक तुझे देकर ख़ुदा ने, दे दिया क्या क्या मुझे
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा
वो नही मिला तो मलाल क्या, जो गुजर गया सो गुजर गया उसे याद करके ना दिल दुखा, जो गुजर गया सो गुजर गया
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जायेगा तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो
आँखों में रहा, दिल में उतरकर नही देखा कश्ती के मुसाफिर ने समन्दर नही देखा, पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला मैं मोम हूँ, उसने मुझे छूकर नही देखा।
कोई फूल सा हाथ काँधे पे था, मेरे पाँव शोलों पे चलते रहे। मेरे रास्ते में उजाला रहा, दिये उस की आँखों के जलते रहे।
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा मगर तुम्हारी तरह कौन मुझ को चाहेगा...
>> Rahat Indori Shayari