दिन भर के दर्द को आँखों में छुपाकर, हम रात के अँधेरों में रोया करते हैं, कहीं इन बहते अश्कों को तू देख न ले, इस डर से तुझसे नज़रें चुराया करते हैं।

सोचा ही नही था जिंदगी में ऐसे भी फ़साने होंगे, रोना भी जरूरी होगा आँसू भी छिपाने होंगे।

काँटों के सेज पर चलने की  हमें अब आदत हो गई है, न रोए कोई हमें देख कर हमें अब आँसू बहाने की आदत हो गई है।

कभी रो के मुस्कुराए, कभी मुस्कुरा के रोए, जब भी तेरी याद आई तुझे भुला के रोए, एक तेरा ही तो नाम था जिसे हज़ार बार लिखा, जितना लिख के खुश हुए उस से ज्यादा मिटा के रोए।

मुझको ऐसा दर्द मिला जिसकी दवा नही, फिर भी खुश हूँ मुझे उस से कोई गिला नही, और कितने आँसू बहाऊँ मैं उसके लिए, जिसको खुदा ने मेरे नसीब में लिखा नही।

आँखों में आ जाते हैं आंसू फिर भी लबों पे हंसी रखनी पड़ती है, ये मोहब्बत भी क्या चीज है यारों जिससे करते हैं उसी से छुपानी पड़ती है।

वो अश्क बनके मेरी चश्म-ए-तर में रहता है, अजीब शख़्स है पानी के घर में रहता है।

ये तड़प ये आँसू मेरे रातों के साथी हैं, बस तेरी यादें मेरे जीने के लिए काफी हैं...

आँसुओं में भी वजन होता है, एक भी छलक जाता है तो मन हल्का हो जाता है...