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Top 40 Kabir Ke Dohe in Hindi

By Funky Life • Last Updated
Top 40 Kabir Ke Dohe in Hindi

Kabir Ke Dohe: संत कबीर दास जी ने हिंदी साहित्य जगत में बहुत बड़ा योगदान दिया। उनके द्वारा लिखे दोहे देश भर में प्रसिद्ध हैं। आज हम लेकर आए हैं कबीर दास जी के कुछ ऐसे बेहद ही लोकप्रिय दोहों का एक छोटा सा संग्रह जिनसे आपको जीवन से जुड़े अद्भुत ज्ञान प्राप्त होंगे। प्रत्येक दोहे में आपको बेहद ही गहरा अर्थ देखने को मिलेगा। आशा करते हैं की आपको ये Kabir Ke Dohe पसंद आयेंगे।

Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe

ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

Kabir Ke Dohe

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।

Kabir Ke Dohe

क्या भरोसे देह का, बिनस जाय क्षण माही।
सांस सांस सुमिरन करो, और जतन कछु नाही॥

Kabir Ke Dohe

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।

Kabir Ke Dohe

साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए
मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।

कबीर के दोहे

Kabir Ke Dohe

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे, तेरा किया न होई.
पानी में घिव निकसे, तो रूखा खाए न कोई.

Kabir Ke Dohe

कबीर कुआ एक हे,पानी भरे अनेक।
बर्तन ही में भेद है पानी सब में एक ।।

Kabir Ke Dohe

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

Kabir Ke Dohe

बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।
एक कबीरा ना मुआ, जेहि के राम आधार॥

Kabir Ke Dohe

कबीरा तेरे जगत में, उल्टी देखी रीत ।
पापी मिलकर राज करें, साधु मांगे भीख ।

Images for kabir ke dohe

Kabir Ke Dohe

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

Kabir Ke Dohe

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

Kabir Ke Dohe

चलती चक्की देख कर, दिया कबीरा रोए
दुई पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।

Kabir Ke Dohe

जब तूं आया जगत में, लोग हंसे तू रोए
ऐसी करनी न करी पाछे हंसे सब कोए।

Kabir Ke Dohe

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय।

Kabir Das Ke Dohe In Hindi

Kabir Ke Dohe

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

Kabir Ke Dohe

दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।

Kabir Ke Dohe

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,
कबहुँ उड़ी ऑखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

Kabir Ke Dohe

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

Kabir Ke Dohe

जहाँ न जाको गुन लहै, तहाँ न ताको ठाँव ।
धोबी बसके क्या करे, दीगम्बर के गाँव ॥

Famous Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe

कस्तूरी कन्डल बसे मृग ढूढै बन माहि।
त्ऐसे घट-घट राम है, दुनिया देखे नहि।।

Kabir Ke Dohe

कबीर तहां न जाइये, जहां जो कुल को हेत
साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत

Kabir Ke Dohe

कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीड़
जो पर पीड़ न जानता, सो काफ़िर बे-पीर

Kabir Ke Dohe

जो तोकू कांता बुवाई, ताहि बोय तू फूल।
तोकू फूल के फूल है, बाको है तिरशूल।।

Kabir Ke Dohe

अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप ।
अति का भला न बरसना, अति की भली न घूप ।।

Best Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए।
मीन सदा जल में रहे, धोय बास न जाए।

Kabir Ke Dohe

कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीख।
स्वांग जाति का पहरी कर, घरी घरी मांगे भीख।।

Kabir Ke Dohe

फल कारन सेवा करे, करे ना मन से काम।
कहे कबीर सेवक नहीं, चाहे चौगुना दाम।।

Kabir Ke Dohe

पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात.
एक दिना छिप जाएगा, ज्यों तारा परभात.

Kabir Ke Dohe

कबीर प्रेम न चक्खिया,चक्खि न लिया साव।
सूने घर का पाहुना, ज्यूं आया त्यूँ जाव॥

Kabir das ki Vani

Kabir Ke Dohe

ढोंगी मित्र न पालिये सर्पिल जाकी धार,
नफरत भीतर से करे जख्मी करे हज़ार !!

Kabir Ke Dohe

जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय ।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय ॥

Kabir Ke Dohe

बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर.!

Kabir Ke Dohe

कबीर, कबीरा हरिके रूठते, गुरुके शरने जाय।
कहै कबीर गुरु रूठते, हरि नहिं होत सहाय।

Kabir Ke Dohe

तन की सौ सौ बनदिशे मन को लगी ना रोक
तन की दो गज कोठरी मन के तीनो लोक

Sant Kabir Ke Dohe

Kabir Ke Dohe

लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ॥

Kabir Ke Dohe

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी |
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।।

Kabir Ke Dohe

ऊँचे कुल का जनमिया, करनी ऊँची न होय ।
सुवर्ण कलश सुरा भरा, साधू निंदा होय ।

Kabir Ke Dohe

काम बिगाड़े भक्ति को, क्रोध बिगाड़े ज्ञान।
लोभ बिगाड़े त्याग को, मोह बिगाड़े ध्यान।।

Kabir Ke Dohe

निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

Gulzar Shayari >>


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Comments

  • Mahesh Tyagi

    संत कबीर दास का हिंदी साहित्य में बहुत योगदान है। कब कबीर दास के दोहे मनुष्य को सच्चाई के रास्ते पर ले जाते हैं।

    Reply